पर्यावरण पर 12वीं क्लास के लिए 1200 शब्दों में भाषण निबंध
Long Environment Day Speech in Hindi
Long Environment Day Speech in Hindi for Class 12 students in 1200 words | Paryavaran Divas par Bhashan

दुनिया भर में 5 जून का दिन विश्व पर्यावरण दिवस के रूप में मनाया जाता है। 1973 में सबसे पहले अमेरिका में विश्व पर्यावरण दिवस के रूप में मनाया गया था। इस वर्ष भी हर वर्ष की तरह पर्यावरण दिवस पर दो-चार पेड़ लगाकर हम अपने दायित्व को पूरा कर लेंगे। लेकिन प्रकृति को समझने की कोशिश नहीं करेंगे। देखाजाए तो सृष्टि के निर्माण में प्रकृति की अहम भूमिका रही है। (Long Environment Day Speech in Hindi)
देखा जाए तो सृष्टि का निर्माण प्रकृति के साथ ही हुआ है। इस दुनिया में सबसे पहले वनस्पितयां आई। जो कि जीवन का प्राथमिक भोजन बना। उसके बाद अन्य जीवों ने अपनी जीवन प्रक्रिया शुरू की। माना जाता है कि मनुष्य की उत्पत्ति अन्य जानवरों के काफी समय बाद हुयी है। अगर कहा जाए तो मनुष्य की उत्पत्ति के बाद से ही इस सृष्टि में आये दिन कोई न कोई बदलाव होते आ रहें हैं। मनुष्य ने अपने बुद्धी व विवेक के बल पर खुद को इतना विकसित कर लिया की और कोई भी जीव उससे ज्यादा विवेकशील नहीं है। यहीकारण है कि दिन प्रतिदिन मनुष्य अपनी बढ़ती जरूरतों को पूरा करने के लिए प्रकृति की कुछ अनमोल धरोहरों को भेंट चढ़ाता जा रहा है।
Long Environment Day 2016 Speech in Hindi
प्रकृति का वह आवरण जिससे हम घिरे हुए है पर्यावरण कहलाता है। आज वही पर्यावरण प्रदुषण की चरम सीमा पर पहुंच चुका है। हर कोई किसी न किसी प्रकार से पर्यावरण को प्रदुषित करने का काम कर रहा है। जहां कलकारखानें लोगों को रोजगार दे रहें हैं। वहीं जल-वायु प्रदुषण में अहम भूमिका भी निभा रहें हैं। कारखानों से निकलने वाला धूंआ हवा में कार्बन डाई आक्साइड की मात्र को बढ़ा देता है जो कि एक प्राण घातक गैस है। इस गैस की वातावरण में अधिक मात्रा होने के कारण सांस लेने में घुटन महसूस होने लगती है। चीन और अमेरिका जैसे कई विकसित देशों के वातावरण में गैसिए संतुलन विगड़ने से लोगों को गैस मासक लगाकर घुमना पड़ता है। अभी अपने देश में यह नौवत नहीं आयी है। लेकिन इस बात से भी मुंह नहीं फेरा जा सकता कि आने वाले भविष्य में हम भी उन्हीं देशों की तरह शुद्ध हवा के लिए गैस मासक लगा कर घुमते नजर आएंगे।
इस बात में कोई दो राय नहीं कि हमारा देश तरकी कर रहा है। आज हम किसी भी देश से कम नहीं है। लेकिन क्या यह सही है कि हम अन्य विकसित देशों की विकास की दौड़ में तो दौड़ते जा रहें हैं परंतु अपनी धरोहर को नष्ट करते जा रहें हैं। जो देश आज प्रदुषण को कम करने में लगा है। एक ओर हम है कि अपने देश में हरे-भरे जंगलों को तहस-नहस करते जा रहें हैं।
भारतवर्ष पुरातत्व काल से ही वनों को अत्याधिक महत्व दिया गया है। हम अगर अपने वेद-पुराण उठा ले तो उनमें भी वनों व वृक्षों को पुजनीय बताया गया है। हमारे धर्मों व कागज की जरूरत पूरा करने के लिए काटे जा रहा है और उन स्थान पर पूनः वृक्षारोपण कारने की बजय रियासी काॅलोनियां व नगर बसाये जा रहें हैं जिससे प्रकृति का संतुलन बिगड़ता जा रहा है।
एक दिन ऐसा आने वाला है जब हम अपनी आने वाली पीढ़ी को वन, उपवन की बातें अपने धार्मिक ग्रंथ रामायण व महाभारत में पढ़कर सुनाएंगे। वन होते क्या है, यह आने वाली पीढ़ी नहीं समझ पाएगी? अब अगर बात की जाए प्रदुषण की तो वृक्षोें का कटना प्रकृतिक संतुलन को बिगाड़ रहा है जिसके कारण वायु प्रदुषण बढ़ता जा रहा है। वायु में बढ़ती कार्बन डाई आक्साइड की मात्रा को पेड़ ही कम कर पाते हैं। पेड़ कार्बन डाई आक्साइड को ग्रहण कर शुद्ध आक्साीजन छोड़ते हैं जिससे प्रकृति में गैसों का संतुलन बना रहता है। लेकिन अब कार्बन उत्साहित करने वाले श्रोत बढ़ते जा रहें हैं। जबकि आक्सीजन बनाने वाले पेड़ों की संख्या दिन-प्रतिदिन कम होती जा रही है।
जल ही जीवन है लेकिन उस जीवन में भी प्रदुषण नाम का जहर घुलता जा रहा है। पानी इंसान की अमूलभूत आवश्यकताओं में से एक है। बिना जल के जीवन की कल्पना करना भी बेकार है। आज के दौर में जल भी प्रदुषण की चरम सीमा पर है। जलवायु के नाम से पर्यावरण को जाना जाता है। लेकिन अब न तो जल प्रदुषण मुक्त है न ही वायु। देश की गंगा, यमुना, गंगोत्री व वेतबा जैसी बड़ी-बड़ी नदियां प्रदुषित हो चुकी है। सभ्यता की शुरूआत नदियों के किनारे हुई थी। लेकिन आज की विकसित होती दुनिया ने उस सभ्यता को दर किनार कर उन जन्मदयत्री नदियों को भी नहीं बक्शा।
भारत देश हमेशा से ही धर्म और आस्था का देश माना जाता रहा है। पुराणों में यहां की नदियों का विशेष महत्व वर्णन किया गया है। हिन्दु धर्म आस्था की मुख्य धरोहर गंगा आज आपनी बदनसीबी के चार-चार आंसू रो रही है। धर्म ग्रंथों के अनुसार राजा भागीरथ ने गंगा को स्वर्ग लोक से मृत्युलोक (पृथ्वी) पर बुलाने के लिए तपस्या की। तपस्या से खुश होकर गंगा पृथ्वी पर अवतरित हुई जिसने भागीरथ के बताए रास्ते पर चलकर उनके पूर्वजों को तार दिया। तभी से गंगा में स्नान कर लोग अपने पापों से मुक्ति पाने आते हैं। धर्म आस्था के चलते गंगा के किनारे कुंभ मेलों का आयोजन किया जाता है। देश भर में चार स्थान हरिद्वार, नासिक, प्रयाग व उन्नाव में कुम्भ के मेले का आयोजन होता है जिसमें देश के कोने-कोने से लाखों की तादात में श्रद्धालू अपने पापों से मुक्ति पाने व अपने बंश को तारने के लिए आते हैं।
जिस गंगा ने भागीरथ के बंश को तारा आज वो दुनिया भर के श्रद्धालुओं के पापों तार रही है। लेकिन उस भगीरथ ने कभी नहीं सोचा होगा जो गंगा उनकी तपस्या से पृथ्वी लोक पर मानव उद्धार के लिए आयी थी एक दिन वो खुद अपने उद्धार के लिए किसी भागीरथ की वाट हेरेंगी। आज गंगा नदी इतनी प्रदुषित हो गयी है कि खुद अपने आप को तारने के लिए किसी भागीरथ का इंतजार करेंगी। जो आए और उसकी व्यथा को समझे।
हम यह क्यों भूल जाते है कि प्रकृति जीवन का आधार है जिसे हम लगातार दुषित करते जा रहे है। इतिहास गवाह है कि प्रकृति के अनुकूल चलने वाला ही विकास करता है। जबकि विपरीत चलने वाले जीवन का तो नमोनिशान नहीं मिला। अब वक्त है कि हम इन बातों पर विचार करना होगा। आखिर कब तक आने वाले संुदर भविष्य के सपने बुनने के लिए अपने पर्यावरण के साथ खिलवाड़ करते रहेंगे। एक दिन तो अति का भी अंत हो जाता है। तो हम क्या है? अभी ज्यादा वक्त नहीं गुजरा आज भी समय है चेतने का इस अपने पर्यावरण को शुद्ध रखने और प्रकृति को बचाने का। इसका एक ही उपाय है वो है प्रकृति को बचाना है प्रदुषण को कम करना है तो हमें ज्यादा से ज्यादा वृक्ष लगाने होंगे। वृक्ष हमें लगाने होंगे लेकिन सरकारों की तरह कागजों पर नहीं बल्कि हमें आज से तय करना होगा कि आने वाली पीढ़ी को अगर हसता-खेलता देखना है तो प्रत्येक को कम से कम एक वृक्ष लगाना होगा।
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